हॉन्ग कॉन्ग। चीन ने परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) में भारत को मिले जबरदस्त समर्थन को रोक पाने में नाकाम रहने पर मध्यस्थता करने वाले प्रमुख अधिकारी वांग कुन और विदेश मंत्रालय के हथियार नियंत्रण विभाग के प्रमुख को जोरदार लताड़ा है। एनएसजी में भारत की एंट्री पर बैन लगाने की कोशिशों के मद्देनजर चीन के पक्ष में समर्थन जुटाने में नाकाम रहने पर चीनी नेतृत्व इन अधिकारियों पर अपनी खीज उतारी है।उच्चस्तरीय सूत्रों का कहना है, वांग कुन को निर्देश मिले थे कि उन्हें कम से कम पेइचिंग के समर्थन में एक तिहाई राष्ट्रों को तैयार करना है। मगर यह आंकड़ा महज चार देशों तक सिमट कर रह गया जबकि भारत के समर्थन में 44 राष्ट्र हो गए थे। इस पूरे घटनाक्रम के बाद चीन की प्रमुख चिंता है कि एनएसजी में मिली विफलता का असर कहीं हेग अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में फिलीपींस की तरफ से दायर केस पर न पड़े। फिलीपींस ने दक्षिण चीन सागर में चीन की दखलअंदाजी और चीन की गतिविधियों की शिकायत हेग अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में की है। पेइचिंग की चिंता है कि भारत संयुक्त राष्ट्र के हेग अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के फैसले का हवाला दे सकता है।
एनएसजी में भारत को सदस्यता न मिले इसके लिए खुद चीन ने यही कदम भारत के खिलाफ उठाया था। उच्चस्तरीय सूत्रों का कहना है कि एनएसजी के लिए भारत के समर्थन का दायरा विश्व स्तर पर बढ़ सकता है। हेग न्यायालय से फैसला अगर चीन के विरुद्ध आया तो भारत उसे अपने पक्ष में हवा बनाने के लिए आधार बनाएगा।
सूत्रों का कहना है कि इस वक्त फोकस एनएसजी से हटकर अंतरराष्ट्रीय विवादों के स्थायी समाधान के लिए हेग न्यायालय द्वारा दिए जाने वाले फैसले पर है। बहुत संभव है कि फैसले के बाद चीन को फिलीपींस की हथियाई हुई जमीन वापस लौटानी पड़े।
फैसले के खिलाफ माहौल बनाने के लिए चीन ने विश्व स्तर पर अभियान शुरू कर दिया है। इस अभियान में शिक्षाविद, कानून विशेषज्ञ, राजनयिक और विदेश सेवा अधिकारी हैं जिनका काम इस पक्ष में तर्क देना है कि इस तरह की कोर्ट कार्यवाही (हेग न्यायालय के संभावित फैसले के संबंध में) पूरी तरह से गैरकानूनी है। हालांकि, चीन की यह भूमिका संयुक्त राष्ट्र के समुद्री सीमाओं संबंधी नियमों (यूएनसीएलओसी)के खिलाफ है, जबकि चीन खुद इस पर हस्ताक्षर करने वाले देशों में शामिल है। चीन का दावा है कि हेग न्यायालय के गैरकानूनी फैसले के खिलाफ उसे 60 देशों का समर्थन मिल चुका है।
एनएसजी में भारत को सदस्यता न मिले इसके लिए खुद चीन ने यही कदम भारत के खिलाफ उठाया था। उच्चस्तरीय सूत्रों का कहना है कि एनएसजी के लिए भारत के समर्थन का दायरा विश्व स्तर पर बढ़ सकता है। हेग न्यायालय से फैसला अगर चीन के विरुद्ध आया तो भारत उसे अपने पक्ष में हवा बनाने के लिए आधार बनाएगा।
सूत्रों का कहना है कि इस वक्त फोकस एनएसजी से हटकर अंतरराष्ट्रीय विवादों के स्थायी समाधान के लिए हेग न्यायालय द्वारा दिए जाने वाले फैसले पर है। बहुत संभव है कि फैसले के बाद चीन को फिलीपींस की हथियाई हुई जमीन वापस लौटानी पड़े।
फैसले के खिलाफ माहौल बनाने के लिए चीन ने विश्व स्तर पर अभियान शुरू कर दिया है। इस अभियान में शिक्षाविद, कानून विशेषज्ञ, राजनयिक और विदेश सेवा अधिकारी हैं जिनका काम इस पक्ष में तर्क देना है कि इस तरह की कोर्ट कार्यवाही (हेग न्यायालय के संभावित फैसले के संबंध में) पूरी तरह से गैरकानूनी है। हालांकि, चीन की यह भूमिका संयुक्त राष्ट्र के समुद्री सीमाओं संबंधी नियमों (यूएनसीएलओसी)के खिलाफ है, जबकि चीन खुद इस पर हस्ताक्षर करने वाले देशों में शामिल है। चीन का दावा है कि हेग न्यायालय के गैरकानूनी फैसले के खिलाफ उसे 60 देशों का समर्थन मिल चुका है।
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