गुरुवार, 18 अगस्त 2016

देशभर में 10 साल की सबसे अच्छी बारिश, पर 58% हिस्से में इस पानी से नुकसान

नई दिल्ली. मानसून की अब तक की रफ्तार से सरकार खुश है। उसे भरोसा है कि इस बारिश से महंगाई काबू में आएगी। साथ ही फ़ूड प्रोडक्शन भी बढ़ेगा। इससे अर्थव्यवस्था में सुधार होगा। केंद्रीय कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने कहा भी है कि अच्छे मानसून से हमें मजबूती मिली है। सरकार का दावा है कि इस बार दलहन और तिलहन को लेकर खास कदम उठाए गए हैं।
- 29 राज्यों के सभी 638 जिलों को दलहन उत्पादन क्षेत्र में शामिल किया गया है। पहले 16 राज्य के 482 जिले ही इसमें शामिल थे।
- पर विशेषज्ञों की राय अलग है। उनका कहना है औसत के हिसाब से 10 साल का सबसे अच्छा मानसून है। पर जिलेवार आंकड़े कुछ और बयां करते हैं।
- 641 जिलों में से 182 में सामान्य से कम बारिश हुई है। 14 जिले तो अति अल्प वर्षा वाले हैं। यानी देश का 30% हिस्सा पानी से महरूम है।
- साथ ही 28% इलाकों में सामान्य से ज्यादा बारिश है। दोनों को जोड़ दें तो करीब 58% इलाके ऐसे हुए जहां कम और अधिक पानी से खेती को नुकसान होने वाला है।
रीवा-सताना में फिर बाढ़ की आशंका, बिहार में अफसरों की छुट्टियां कैंसल
-- इस बीच मध्यप्रदेश के रीवा सताना जिलों में पिछले तीन दिन से लगातार बारिश की वजह से बाढ़ का खतरा है। दोनों जिलों में हजारों मकान व करीब 70 गांव पानी में डूबे हुए हैं।
- प्रशासन ने करीब चार हजार लोगों को प्रशासन ने सुरक्षित स्थानों पर पहुंचकर फ़ूड पैकेट दिए।
- उधर, बिहार में समेत गंगा, सोन, गंडक और पुनपुन नदियों का जलस्तर बढ़ने की वजह से पटना और हाजीपुर में अलर्ट किया गया है।
- संभावित खतरों से निपटने के लिए एनडीआरएफ व एसडीआरएफ को 24 घंटे अलर्ट रहने को कहा गया है। 
- बिहार में जिन जिलों में बाढ़ का खतरा बना हुआ है, वहां सभी अफसरों और कर्मचारियों की छुट्टियां कैंसल कर दी गई हैं।

सिर्फ जलाशय भरने से बात नहीं बनेगी; भूजल ही हमारा वाटर बैंक है, इसे ठीक करना होगा
सरकार जिन 91 जलाशयों के भरने का दावा कर रही है, उनसे असलियत का पता नहीं चलता। सेंट्रल वॉटर कमीशन के मुताबिक देश में करीब 5000 बड़े बांध हैं। साथ ही करीब 5 लाख छोटे बांध भी हैं। इनके अलावा लाखों अन्य छोटे-बड़े ताल-तलैया हैं सो अलग। अभी जो बारिश हो रही है ये अगस्त के बाकी बचे दिनों में व सितंबर में और तेज होंगे। हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि शुरुआती बारिश से जलाशय नहीं भरते। यह पानी सूखी जमीन में ही समा जाता है। बाद में आने वाली बारिश से ही जलाशय भरता है। लेकिन एक बार जलाशय भर गया, तो उसके बाद की बारिश से इन जलाशयों को कोई फायदा नहीं होता है। यह पानी केवल अगले साल तक ही चलेगा। असल फायदा तो भूजल में होने वाली बढ़ोतरी है। अगर हम भूजल में जमा पानी को बचा सके और खर्च में किफायत बरत सके तो आने वाले समय में काफी फायदा हो सकता है।
भूजल ही हमारा असली वाटर बैंक है। इसके पानी को हमें एफडी यानी फिक्स्ड डिपोजिट की तरह इस्तेमाल करना चाहिए। यानी मूल धन छोड़कर चलिए और ब्याज का ही इस्तेमाल करिए। इसके लिए जरूरी है सरकार बड़े पैमाने पर रिचार्ज वेल बनाए। ताकि बारिश की हर बूंद को बहने की बजाय बचाया जा सके। इसके लिए खेती की नीति भी ठीक करनी होगी। जल संरक्षण से खेती का सीधा जुड़ाव है।
किसानों को दालों के लिए कर्ज नहीं के बराबर मिलता है। जबकि इसमें पानी कम खर्च होता है। वहीं, गन्ने जैसी ज्यादा पानी वाली फसल के लिए ज्यादा कर्ज मिलता है। इस उल्टी नीति को सीधा करे सरकार। नहीं तो धरती के भीतर का पानी खत्म होता रहेगा।

किसानों की आय तय करने की व्यवस्था न हुई तो अच्छे मानसून से भी नहीं रुकेंगी खुदकुशी
सही है कि इस साल मानसून मेहरबान है। पर जीडीपी बढ़ने के सरकारी दावे बेबुनियाद और गलत हैं। सच्चाई यह है कि इस बारिश से किसानों की खुदकुशी नहीं रुकने वाली। सरकारें खेती पर ध्यान दे तो उसके आर्थिक सुधार नाकाम हो जाएंगे। हम दालें आयात कर रहे पर उसकी बुवाई के लिए बैंक कर्ज तक नहीं देते। सरकार को किसानों को निश्चित आय देने के लिए आयोग बनाना चाहिए। अमेरिका और यूरोप में सरकारें किसानों की भारी मदद करती हैं।
अगले 10 सालों में अमेरिका सब्सिडी व अन्य मदद के तौर पर किसानों पर 64 हजार अरब रुपए खर्च करेगा। और हमारे यहां एक सर्वे बता रहा कि 17 राज्यों के किसानों की अाैसत सालाना आय महज 20 हजार रुपए ही है। इसमें वह अनाज भी शामिल है, जो वह अपने परिवार के लिए निकालकर रख लेता है। दूसरे शब्दों में इन राज्यों में किसान की मासिक आय सिर्फ 1,666 रु. है। राष्ट्रीय स्तर पर एनएसएसओ ने किसान की मासिक आय प्रति परिवार सिर्फ 3000 रु. आंकी है। अगर सरकार ने किसानों की आय तय करने की व्यवस्था नहीं की तो मानसून कितना ही अच्छा हो खुदकुशी नहीं रुकेगी। पंजाब खुदकुशी के मामले में नंबर दो पर है। जबकि वहां 98% खेत सिंचित हैं। यानी मानसून पर निर्भर नहीं हैं।
1970 में गेहूं 600 रु./क्विंटल था। आज यह बढ़कर महज 1450 रु./क्विंटल तक पहुंचा है। वहीं इन 46 सालों में सरकारी कर्मचारियों का वेतन 300 गुना और काॅरपोरेट में वेतन 1000 गुना तक बढ़ा है। लेकिन किसानों को क्या मिला? किसानों की मौजूदा हालत आर्थिक सुधारों का ही नतीजा है। मानसून से इसमें कोई असर नहीं पड़ेगा।
देविंदर शर्मा, कृषि एक्सपर्ट


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