शनिवार, 13 अगस्त 2016

MP की आंगनबाड़ियों में डाइट सप्लाई का घोटाला; मंत्री ने मर्जी से बदला कैबिनेट का फैसला

भोपाल. मध्य प्रदेश में पोषण आहार सिस्टम पर सवाल खड़े हुए हैं। अरबों रुपए के इस सेंट्रलाइज्ड बिजनेस में तीन कंपनियाें का ही दबदबा है। सरकार ने पहले से काबिज इन कंपनियों के साथ 2012 में सप्लाई के लिए एकमुश्त पांच साल का करार किया है। आंगनबाड़ियों के जरिए कुपोषित बच्चों और प्रेग्नेंट महिलाओं को दी जाने वाली न्यूट्रिशियस डाइट की सप्लाई में बेहिसाब गड़बड़ियां सामने आई हैं। सालाना 1200 करोड़ रुपए के बजट से फायदा तीन कंपनियों को हो रहा है। लेकिन क्वालिटी अौर क्वांटिटी, दोनों लेवल पर खामियों के चलते बजट का 60 फीसदी ही बमुश्किल जरूरतमंदों तक गया है। ख़ास बात यह कि पोषण आहार की सप्लाई महिला बाल विकास विभाग, एमपी स्टेट एग्रो और तीन कंपनियों के ताकतवर त्रिकोण से चलती रही है। कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए तत्कालीन महिला बाल विकास मंत्री कुसुम मेहदेले ने नियमों को दरकिनार कर केबिनेट का फैसला तक बदल दिया था। भास्कर की रिपोर्ट के बाद संसद में गूंजा घोटाला , सीबीआई जांच की मांग...
- कुसुम मेहदेले ने नियम कायदे को दरकिनार कर मध्य प्रदेश कैबिनेट निर्णय को बदल दिया था।
- सुप्रीम कोर्ट ने अक्टूबर 2004 में आदेश दिए कि पोषण आहार की राशि आंगनवाड़ी कार्यकर्ता एवं अध्यक्ष सहयोगनी मातृ समिति के संयुक्त खाते में जमा कराई जाए।
- इसे लागू करने में सरकार को ढाई वर्ष से अधिक का समय लगा। परंतु इस फैसले को पलटने में कोई देरी नहीं हुई। (दैनिक भास्कर ने 12 अगस्त को पोषण आहार घोटाले का पर्दाफाश किया था। 
आश्वासन की आड़ में पलट दिया गया सुप्रीम कोर्ट का फैसला
- सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद जनवरी 2007 से शुरू गई व्यवस्था एक वर्ष के अंदर ख़त्म कर दी गई।
- आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहयोगिनी मातृ समितियों के बैंक खातों में भेजी जाने वाली राशि पर रोक लगा दी गई।
- मंत्रीजी ने विधानसभा में दिए गए आश्वासन की आड़ में इसे तत्काल पलट दिया और ठेकेदारों द्वारा संचालित महिला मंडलों और स्वसहायता समूहों को पोषण आहार प्रदाय करने की जिम्मेदारी फिर सौंप दी। 
- यह व्यवस्था लागू करवाने में मंत्री समेत पूरा महिला बाल विकास इस कदर उतावला था कि मंत्री के आश्वासन के मात्र आठ दिन बाद ही निर्देश जारी हो गए। 
- तीनों कंपनियां निजी हैं, लेकिन इनके नाम के पहले एमपी स्टेट एग्रो की तर्ज पर "एमपी' लगा हुआ है। इस कारण कई लोग इन्हें सरकारी उपक्रम ही समझते रहे।
कैबिनेट और वित्त विभाग से भी ऊपर कंपनियां

- इस जल्दबाज़ी में मेहदेले यह भूल गईं कि कैबिनेट के फैसले में बदलाव के लिए उसे मंत्रिपरिषद में दोबारा ले जाना जरूरी है। 
- यही नहीं महिला बाल विकास विभाग ने वित्त विभाग की भी कोई राय नहीं ली। 
- परिवर्तित निर्देश ज़ारी करने से पहले कैबिनेट की मंज़ूरी आवश्यक थी, जो इस मामले में नहीं ली गई। 
- विभागीय सूत्रों के अनुसार इसके बाद ही दलिया सप्लाई में बड़े ठेकेदारों का दबदबा बढ़ने लगा। 
- मंत्री ने कैबिनेट का फैसला बदलकर मप्र शासन के नियम 11 (एक ) और नियम 7 के आठवें निर्देश का उल्लंघन किया।
संसद में गूंजा घोटाला, सीबीआई जांच की मांग

- शुक्रवार को यह मामला संसद में भी गूंजा। सांसदों ने घोटाले की सीबीआई जांच की मांग की। 
- इस मामले पर संसद के बाहर कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने कहा, प्रधानमंत्री कहते हैं कि न खाऊंगा, न खाने दूंगा, चौकीदार के रूप में काम करूंगा। 
-अब यह स्कीम पूरी तरह केंद्र की है। क्या वे इसकी जांच कराएंगे? उन्होंने कहा, कांग्रेस एफआईआर कराएगी या पीआईएल लगाएगी।
इधर देरी : 27 महीने लग गए

- सुप्रीम कोर्ट ने अक्टूबर 2004 में निर्देश दिए थे कि पोषण आहार प्रदाय में ठेकेदारी व्यवस्था तत्काल समाप्त की जाए। 
- कैबिनेट ने 22 जनवरी 2007 को निर्णय लिया। निर्देश 15 फरवरी को जारी किए गए। 
- कोर्ट के निर्देशों को लागू करने में सरकार को 27 महीनों का समय लग गया ।
इधर तेज़ी : एक दिन में फैसला
-सात दिन बाद 27 मार्च को विभाग ने अफसरों को पोषण आहार की राशि बैंक खातों में जमा नहीं करने को कहा। 
-31 मार्च को एक और पत्र जारी हुआ, जिसमें इस बात पर नाराज़गी व्यक्त की गई कि कुछ जिलों में राशि आंगनवाड़ी कार्यकर्ता एवं समिति के खातों में जमा की जा रही है।
घोटाले के खेल में अहम हैं ये 16 किरदार

रवींद्र चतुर्वेदी, जीएम, एमपी स्टेट एग्रो, 1984 से निगम में। पाठ्य पुस्तक निगम में भी रहे। विभागीय जांचें हुई।
वेंकटेश धवल,एमपी स्टेट एग्रो का एजेंडा तय करते हैं। 30 जून को रिटायरमेंट के बाद तुरंत संविदा नियुक्ति मिली।
-अक्षय श्रीवास्तवऔर हरीश माथुर..आईसीडीएस के हुनरमंद अफसर। माथुर 20 साल से एक ही सीट पर हैं।
राजीव खरेऔर गोविंद रघुवंशी... क्वालिटी चेक करने वाले एडी। पोषाहार की न डिग्री है, न योग्यता। 
आरपी सिंह,स्थापना शाखा में जेडी। छह साल से हैं। 
- छह सीडीपीओ. फील्ड की पोस्ट है। 10-12 साल से जमे हैं। हरीश माथुरइनमें से एक हैं। इनकी आड़ में छह और सीडीपीओ यहां कई सेक्शंस में लाए गए।
सुनील जैन, ह्दयेश दीक्षितऔर अवधेश दीक्षित...पोषण आहार की सबसे ताकतवर धुरी। इंदौर मूल के दीक्षित बंधुओं की 12 कंपनियां आयकर विभाग के राडार पर हैं।

सिस्टम बदलने की सिफारिश पर अफसर को ही बदला

- महिला एवं बाल विकास विभाग की तत्कालीन प्रमुख सचिव टीनू जोशीके यहां आयकर विभाग के चर्चित छापे में तीन करोड़ रुपए नकद मिले थे। 
- वे दो साल विभाग में रहीं थीं मगर विभाग में किसी प्रकार की जांच पड़ताल या समीक्षा तक जरूरी नहीं समझी गई। 
- सप्लाई सिस्टम पर कोई आंच नहीं आई। यहां तक कि वर्ष 2008 में एक अफसर ने जब पहली बार गड़बड़ियां पकड़ीं तो कंपनियों के वर्चस्व वाले सप्लाई सिस्टम को बदलने की सिफारिशें सरकार से कीं।
- सिस्टम बदलने की बजाए उक्त अफसर को ही हटा दिया गया। फिर एमपी स्टेट एग्रो कंपनियों का रक्षा कवच बनकर रह गया।
सालाना बजट 12 सौ करोड़ है और सप्लाई इन्हीं कंपनियों के भरोसे
- एमपी स्टेट एग्रो ने तीनों कंपनियों से साठगांठ सु्प्रीम कोर्ट के एक आदेश की आड़ में की। 
- वर्ष 2007 में कोर्ट ने कहा था कि पोषण आहार की सप्लाई में बच्चों की सुविधा के लिए बार-बार टेंडर न किए जाएं। 
- एमपी एग्रो ने तब कंपनियों के साथ कॉन्ट्रेक्ट कर लिया। तब यह तय हुआ था कि जल्द ही सरकार अपना ही प्लांट शुरू कर देगी। 
- भोपाल में ही नया प्लांट खोलने की कवायद भी शुरू हुई। यह तब की बात है जब पोषण आहार का सालाना बजट 160 करोड़ रुपए का था और हर साल सौ करोड़ के हिसाब से इजाफा हो रहा था। 
- इसके बाद नया प्लांट ठंडे बस्ते में चला गया। एमपी एग्रो ने अपने बाड़ी प्लांट की क्षमता तक नहीं बढ़ाई। 
- खुले तौर पर वह कंपनियों के हित में सक्रिय रहा। अब सालाना बजट 12 सौ करोड़ है और सप्लाई इन्हीं कंपनियों के भरोसे है। 
- इनमें एमपी एग्रो की सिर्फ 11 फीसदी इक्विटी है। 
- एक विशेषज्ञ के अनुसार इन्हीं परिस्थितियों में आंध्रप्रदेश सरकार ने पोषण आहार का पूरा काम सरकारी उपक्रम एपी फूड कॉरपोरेशन के जरिए कराया।

मध्यप्रदेश में इस सिस्टम को बदलने की कोशिश नाकाम रही...
#1. नोटशीट में दर्ज है... बिलों के भुगतान में अनदेखी मुमकिन है

- वर्ष 2008 में आईसीडीएस की ओर से गड़बड़ियों की भनक लगने पर सरकार को चेताया गया कि ऐसा प्रतीत होता है कि जिलों से पोषण आहार की मांग प्राप्त करना औपचारिकता मात्र है। 
-जिलों को पोषण आहार कितना मिला, इसकी समीक्षा का सिस्टम ही नहीं है। हो सकता है कि बिलों के भुगतान में भी इन तथ्यों की अनदेखी की जा रही हो।
- व्यवस्था से नाराज उक्त अधिकारी ने दस्तावेजों में यह भी लिखा कि मेरे समक्ष कोई भी नस्ती भुगतान हेतु तब तक प्रस्तुत नहीं की जाए जब तक कि इन प्रश्नों का समाधानपूर्वक उत्तर प्राप्त न कर लिया जाए। 
- इससे अफसरों और कंपनियों के गठजोड़ में खलबली मच गई थी। बाद में करोड़ों रुपए के इस खेल के नियम बदलने की कोशिश में उक्त अफसर को ही हटना पड़ा। (दस्तावेजों की प्रति भास्कर के पास उपलब्ध।)
#2. न क्वालिटी की माॅनिटरिंग, न क्वांटिटी की
-दस्तावेजों से यह भी साफ है कि पोषण आहार सप्लाई में न तो क्वालिटी की मॉनिटरिंग की कोई व्यवस्था है, न ही क्वांटिटी की।
-क्वालिटी चेक एक खानापूर्ति है, जिसमें महिला एवं बाल विकास विभाग के दो अफसरों को अतिरिक्त काम मिला है। 
-पिछले दिनों रीवा जिले में एक्सपायर्ड पोषण आहार मिले थे। जनवरी में बने तीन माह अवधि के पोषण आहार जून में बच्चों में बंट रहे थे। दूसरे बैग में कई पैकेट फटे हुए मिले।
#3. 30% अनिवार्य सप्लाई पर भी सवाल

- नियमानुसार किसी भी सरकारी परचेजिंग में 30 परसेंट सामग्री एससी-एसटी कैटेगरी से अनिवार्य है।
- वर्ष 2008 में मेसर्स भैरूलाल रामलाल कुमावत एंड संस प्रा.लि. ने रुचि दिखाई। 
- उद्योग विभाग के एक अफसर ने बताया कि यह मामला 28 अगस्त 2008 को संचालक मंडल की बैठक में आया, लेकिन ज्वाइंट वेंचर नहीं हुआ। 
-सूत्रों के मुताबिक 2007 से एमपी एग्रो न्यूट्री फूड प्रा.लि. ही अजा-जजा श्रेणी के तहत पोषण आहार दे रही है।
#4. सुधार करने वाले सिस्टम से बाहर

- ऐसा नहीं है कि यह गड़बड़झाला किसी की निगाह में नहीं था। आईसीडीएस में पदस्थ एक अफसर ने कुछ साल पहले एमपी एग्रो और इन कंपनियों की गड़बड़ियां पकड़ीं। 
-तब सरकार से सिफारिश की गई कि पोषण आहार का काम जिलों को ही हस्तांतरित कर दिया जाना चाहिए। इससे व्यवस्था ज्यादा पारदर्शी होगी और जिलों से वास्तविक मांग के आधार पर सप्लाई संभव होगी। 
-संचालनालय का काम सिर्फ इसकी माॅनिटरिंग का होगा। इस प्रस्ताव पर एमपी एग्रो के जीएम रवींद्र चतुर्वेदी ने ही रोड़े अटकाए। 
- उन्होंने 4 मार्च 2008 को मुख्यमंत्री के उस आदेश का भी जिक्र किया था, जिसमें कहा गया था कि महिला एवं बाल विकास विभाग अपनी जरूरत के हिसाब से एमपी एग्रो को सप्लाई आदेश जारी करेगा ताकि जल्दी से जल्दी आंगनबाड़ी केंद्रों को पोषण आहार मिल सके।
- विकेंद्रीकरण की यह सिफारिश सिस्टम में सुधार की पहली और आखिरी कोशिश थी, जिसे नाकाम कर दिया गया।
मंत्री ने लिखा- यह व्यवस्था में बाधा

-व्यवस्था में खामियों पर उक्त अफसर ने दस्तावेजों में लिखा कि मेरा दृढ़ मत है कि इस व्यवस्था को विक्रेंदीकृत कर जिला स्तर से ही आॅर्डर लिए जाएं। 
-तत्कालीन महिला एवं बाल विकास मंत्री रंजना बघेल ने नोटशीट में लिखा कि अधिकारी द्वारा बार-बार विकेंद्रीकृत व्यवस्था हेतु जोर दिया जा रहा है, जो उचित नहीं है। 
-भविष्य में व्यक्तिगत दृढ़ मत को व्यवस्था के ठीक ढंग से हो रहे संचालन में बाधा नहीं बनाएं। (दस्तावेज भास्कर के पास उपलब्ध।)
सबसे बेहतर सिस्टम उड़ीसा में

-उड़ीसा में पोषण आहार सप्लाई का मॉडल देश में आदर्श माना जाता है। 
-यहां स्वसहायता समूह स्थानीय स्तर पर यह काम करते हैं। ब्लॉक स्तर तक यूनिट स्थापित हैं, यानी जहां पोषण आहार की जरूरत है, वहीं। 
-मगर मध्यप्रदेश सरकार ने शुरू से ही बदनाम अपने सिस्टम को सुधारने की कोई पहल नहीं की। 
-सु्प्रीम कोर्ट के अादेशानुसार यदि स्वसहायता समूहों को यह काम मिलता तो एक समूह की तीन आंगनवाड़ी के हिसाब से 30 हजार समूहों को काम मिलता। 
-एक समूह में औसत 10 महिलाओं के हिसाब से तीन लाख महिलाओं को रोजगार मिलता।भविष्य में व्यक्तिगत दृढ़ मत को व्यवस्था के ठीक ढंग से हो रहे संचालन में बाधा नहीं बनाएं। (दस्तावेज भास्कर के पास उपलब्ध।)


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें