सोमवार, 29 अगस्त 2016

मोदी की मन की बात के टॉपिक, 150 लोगों की टीम करती है 250 घंटे रिसर्च

 मोदी की मन की बात के टॉपिक, 150 लोगों की टीम करती है 250 घंटे रिसर्च


नई दिल्ली.नरेंद्र मोदी हर महीने रेडियो पर मन की बात करते हैं। अक्टूबर में इस सिलसिले को दो बरस हो जाएंगे। खादी से लेकर ड्रग्स, बच्चों के स्ट्रेस से लेकर बच्चियों की घटती संख्या और 84 साल की एक रिटायर्ड टीचर की ओर से गिव-इट-अप के लिए 50 हजार के रिलीफ फंड देने तक के मुद्दे मन की बात के दौरान उठे। मोदी ये मुद्दे चुनते कैसे हैं? कैसे यह तय किया जाता है कि किन लोगों से प्रोग्राम के दौरान पीएम बात करेंगे? कौन बताता है उन्हें? और मुद्दे उठाने के बाद क्या वे सब भूल जाते हैं या उन पर कोई काम भी होता है? इन्हीं सवालों के जवाब जानने के लिए दैनिक भास्कर ने ‘मन की बात’ से जुड़े अफसरों और टीम के मेंबर्स से बातकर प्रोसेस समझी....
सोशल मीडिया, अखबारों और ई-मेल से ढूंढते हैं सब्जेक्ट , रिसर्च टीम इश्यू तय करती है; शर्त सिर्फ ये कि मुद्दा सोशल चेंज लाने वाला हो...
- मन की बात के लिए सब्जेक्ट आम लोगों की ओर से आने वाले क्वेश्चन, टिप्स और प्रॉब्लम से निकाला जाता है।
- कई बार तो सब्जेक्ट एक छोटे से गांव से भी आते हैं और कई बार दिल्ली-मुंबई जैसे बड़े शहरों से।
- पीएमओ में बैठी टीम सिर्फ उसी सब्जेक्ट को चुनती है, जो पूरे देश से जुड़ा हुआ लगे। इसके लिए तीन तरीके अपनाए जाते हैं।
क्या हैं वो तीन तरीके...
पहला-सोशल मीडिया। यहां करीब 150 लोगों की टीम है। जो देशभर से आने वाले कमेंट्स, पोस्ट की सूची बनाती है और मुद्दे तलाशती है।
- इसके बाद ये लिस्ट आईटी-मीडिया सेल के इंचार्ज हीरेन जोशी और जगदीश ठक्कर के पास जाती है। वे इन मुद्दों और सब्जेक्टों को क्रॉस चेक करवाते हैं।
- क्रॉस चेकिंग का भी एक सिस्टम है। सब्जेक्ट को सीधे राज्यों में भेजने के बजाय पीएमओ की टीम अपने स्तर पर उनकी छानबीन करती है।
- जब लगता है कि जो मुद्दे मिले हैं, वे सही हैं, तब इन्हें फाइनल कर पीएम के पास भेज दिया जाता है।
दूसरा-प्रधानमंत्री अपने स्तर पर भी मुद्दे तय करते हैं। वे ये मुद्दे अखबार पढ़कर तय करते हैं।
- इसके लिए जब भी वे देश में रहते हैं तो सुबह 7 बजे से रात 11 बजे तक के अपने शेड्यूल के दौरान रोज 10 से 12 अखबार पढ़ते हैं।
- इनमें भी ज्यादातर अखबार रीजनल होते हैं। इसकी वजह यह है कि नेशनल न्यूज़ पेपर के बजाय लोगों की छोटी-छोटी समस्याएं रीजनल पेपर में आसानी से मिल जाती हैं।
तीसरा - पीएमओ की वेबसाइट पर देशभर से आने वाली पोस्ट या डाक के जरिये मिलने वाली चिट्‌ठियों से भी मुद्दे तलाशे जाते हैं।
- इन तीन प्रोसेस से गुजरने के बाद एक सब्जेक्ट पर अंतिम फैसला ले लिया जाता है। इसके बाद इसे रिसर्च टीम के पास भेज दिया जाता है।
दो से ढाई सौ घंटे एक टॉपिक पर रिसर्च टीम करती है काम...
- रिसर्च टीम एक सब्जेक्ट पर दो से ढाई सौ घंटे काम करती है। समस्या क्या है, क्यों है, कब से है? किन कारणों की वजह से हल नहीं हो पाई? कैसे हल होगी?
- लोग अपने स्तर पर इसमें कैसे मदद कर सकते हैं आदि प्वाइंट्स तय होते हैं। इसी दौरान ये भी तय होता है कि प्रोग्राम के दौरान प्रधानमंत्री किन-किन लोगों से बात करेंगे।
- फिर उन लोगों का बैकग्राउंड चैक किया जाता है। सब्जेक्ट , व्यक्ति तय होने के बाद कार्यक्रम के लिए ऑल इंडिया रेडियो को सूचना दी जाती है।
- ऑल इंडिया रेडियो प्रधानमंत्री रेसिडेंस 7 रेसकोर्स रोड जाकर इसकी रिकार्डिंग करता है।
ये कॉन्सेप्ट आया कैसे?
- पीएम ऑफिस में मीडिया डिपार्टमेंट देखने वाले एक सीनियर ऑफिसर ने बताया-शपथ लेने के कोई महीने भर बाद एक दिन पीएम पीएमओ के कुछ अफसरों के साथ बैठक कर रहे थे।
- इसी दौरान उन्होंने कहा-मैं गरीब परिवारों से सीधे बात करना चाहता हूं। बताइए, ये कैसे होगा? कई सुझावों के बाद बात टीवी चैनलों, न्यूज़पेपर के ऐड का सहारा लेने तक पहुंची।
- इसी दौरान जिक्र रेडियो का भी आया। रेडियो की पहुंच देश के हर उस हिस्से तक है, जहां टीवी-अखबार भी नहीं पहुंच पाए हैं, इसलिए सहमति रेडियो पर बन गई।
- चूंकि मोदी लोगों से उनके दिल की बात करना चाहते थे इसलिए नाम भी ‘मन की बात’ तय हो गया।
- रेडियो को इस प्रोग्राम को चुनने के पीछे की वजह यह थी कि देश के 98% जनता तक रेडियो की पहुंच है। एक सर्वे के मुताबिक महानगरों में इस कार्यक्रम को सुनने वालों की संख्या 60 से 80% रही है।
मन की बात में सियासी मुद्दे बैन हैं
मन की बात के सब्जेक्ट चुनने का पैरामीटर्स खुद पीएम ने बनाया था। पीएमओ अधिकारियों की बैठक में उन्होंने कहा था कोई भी सब्जेक्ट राजनीति से जुड़ा हुआ नहीं होना चाहिए। सब्जेक्ट वो हो जो समाज में बदलाव ला सके। समाज के अच्छे कामों का प्रसार तो हो ही, जो कमियां मिलती हैं, उन्हें भी दूर किया जा सके। ये विषय देश के करोड़ों लोगों की आवाज से निकलना चाहिए। ना कि मंत्रालयों में बैठे दो-चार अफसर तय कर लें।

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