बुधवार, 17 अगस्त 2016

कश्मीर से सबसे बड़ी ग्राउंड रिपोर्ट

कश्मीर से सबसे बड़ी ग्राउंड रिपोर्ट: बुजुर्गों ने कहा- पत्थर फेंकने वालों को रोकते हैं तो हमें थप्पड़ मारते हैं


श्रीनगर. कश्मीर में कर्फ्यू को 39 दिन हो चुके हैं। 65 जानें जा चुकी हैं। एक दिन के लिए भी कर्फ्यू नहीं टूटा। संभवत: देश का सबसे लंबा कर्फ्यू। 2010 में भी हिंसा चार महीने चली थी, पर तब बीच-बीच में कर्फ्यू हट जाता था। लेकिन इस बार...? इन्हीं वजहों को तलाशने के लिए आतंक के गढ़ डाउन टाउन में भास्करने 12 घंटे गुजारे। युवाओं, महिलाओं, बुजुर्गों सबसे बातें की। यहां दो तरह के चेहरे नजर आए। एक बेबस और खौफ से भरे, तो दूसरे गुस्से से। पढ़िए डाउन टाउन से उपमिता वाजपेयी की कश्मीर पर सबसे बड़ी रिपोर्ट...
- डाउन टाउन का महाराजगंज कश्मीर का सबसे बड़ा बाजार है। बंद दुकानों के बाहर बैठे बुजुर्ग बताते हैं कि 90 के दशक से ही कर्फ्यू यहां की जिंदगी का हिस्सा रहा है। कर्फ्यू और क्रैकडाउन पहले भी होते थे। कोई शुक्रवार ऐसा नहीं जब यहां पत्थरबाजी न हो। लेकिन इन लड़कों को इतना बेकाबू कभी नहीं देखा।
- जब उनसे पूछा कि पत्थर फेंकने वालों को आप समझाते क्यों नहीं? तो 65 साल के एक बुजुर्ग बोले- ‘हम उन्हें रोकते हैं तो वो हमें ही थप्पड़ मारते हैं। ये दूसरे मोहल्लों से हमारे इलाके में आकर सिक्युरिटी वालों पर पत्थर फेंकते हैं। हम तो इन्हें पहचान भी नहीं पाते। ये चेहरे पर कपड़ा बांधकर हुडदंग करते हैं।
- ''मस्जिदों से लोगों को प्रदर्शन में आने की धमकियां देते हैं। घरों के दरवाजे आधी रात ठोककर कहते हैं सड़क पर निकलो और नारे लगाओ।''
- इस बुजुर्ग की बात पर वहां बैठे कुछ और बुजुर्गों ने हामी भरी और कहा कि हमारे बच्चे ऐसे नहीं हो सकते। पत्थरबाजी यहां पेशा बन चुकी है।
- ये डाउनटाउन वही इलाका है जहां से घाटी में आतंकवाद शुरू हुआ।
दिन, इलाकों से तय होते हैं पत्थरबाजों के रेट, अफीम, चरस डोज के बदले भी फेंकते हैं
- पुलिस की गिरफ्त में आए कुछ पत्थरबाजों ने खुलासा किया कि कुछ लड़के चरस और अफीम, ड्रग्स के डोज के बदले भी पत्थरबाजी करते हैं। पत्थरबाजों का हर मोहल्ले का अपना हेड है, जो लड़कों को पसै देता है। हर दिन और इलाके में पत्थरबाजी का अलग-अलग रेट है।
- पूरे दिन के अलग रेट, जुमे के अलग रेट। पाकिस्तान का झंडा लहराने के ज्यादा पसै मिलते हैं। इन्होंने अपना एसोसिएशन भी बना रखा है। यही एसोसिएशन बयान जारी कर धमकियां देता है। हाल में लड़कियों को स्कूटी चलाने पर स्कूटी समेत जलाने की धमकी भी इन्हीं लोगों ने दी थी।
कैसे फैली कश्मीर में हिंसा?

- हिजबुल के पोस्टर ब्वॉय और कमांडर बुरहान को पिछले महीने सिक्युरिटी फोर्सेस ने मार गिराया था।
- उसकी मौत के बाद कश्मीर में अलगाववादी प्रदर्शन करने लगे। धीरे-धीरे यह हिंसक होता गया।
- बता दें कि 22 साल का बुरहान 15 साल की उम्र में आतंकी बना था। वह पिछले कुछ महीनों से साउथ कश्मीर में बहुत एक्टिव था।
- उसने यहां के कई पढ़े-लिखे यूथ्स को बरगला कर आतंकी बनाया था। कश्मीरी यूथ को रिक्रूट करने के लिए वह फेसबुक-वॉट्सऐप पर वीडियो और फोटो पोस्ट करता था।
- इनमें वो हथियारों के साथ सिक्युरिटी फोर्सेस का मजाक उड़ाते हुए नजर आता था। वानी को भड़काऊ स्पीच देने और सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने में एक्सपर्ट माना जाता था।

सवा महीने से लगातार कर्फ्यू का असर श्रीनगर ही नहीं, आसपास के इलाकों तक में साफ नजर आ रहा है। सड़कें सूनी हैं। चौक पर बिखरे पत्थर, कंटीले तार और जली हुई गाड़ियां जंग सा अहसास कराते हैं। गलियों की खिड़कियों के टूटे कांच से खौफ झांकता है। यहां दीवारों के भीतर बंद आम शहरी सदमे, डर और गुस्से में है तो सड़कों पर पुलिस-सीआरपीएफ के जवान हैं, जो पत्थरों से बुरी तरह जख्मी होकर भी रोज 18-20 घंटे ड्यूटी दे रहे हैं। तनाव से जूझ रहे श्रीनगर के हर हिस्से का जायजा लिया उपमिता वाजपेयी ने।
आम लोगों ने सुनाई विरोध और कर्फ्यू के पीछे की कहानी
#1. वो रोज घर आकर धमकाते हैं- प्रोटेस्ट में चलो, नहीं तो भुगतने को तैयार रहो
- उपद्रव से सबसे ज्यादा साउथ कश्मीर प्रभावित है। इसी इलाके में बिजबिहेड़ा गांव है। यह गांव दो बातों के लिए मशहूर है। पहला चिनारों के बाग और दूसरा सीएम मेहबूबा मुफ्ती के होमटाउन के तौर पर। 
- वहां हाईवे के बगल में एक घर में सबीना अकेली थीं। उनका बेटा पिता को श्रीनगर अस्पताल लेकर गया था। शुक्रवार को दोपहर बाद नमाज पढ़कर प्रोटेस्ट कर रहे लड़कों की भीड़ सबीना के घर में घुस आई। 
-उन्हें धमकाने लगी की आप प्रोटेस्ट के लिए क्यों नहीं आते हो? वो घबराकर रोने लगीं, बोलीं- मेरे घुटनों में दर्द है, मैं कैसे आऊं?
- दरअसल, घाटी में पत्थरबाजों ने एक रूल बना रखा है। हर घर से एक व्यक्ति को प्रदर्शन में भीड़ बढ़ाने जाना जरूरी है। नहीं गए तो भुगतने के लिए तैयार रहो।
#2. ‘मैं भारत में खुश हूं, मुझे घर में कैद होने और फोन बंद होने से आजादी चाहिए'
- असिया स्कूल टीचर हैं। वो कहती हैं- 2010 में जब प्रोटेस्ट हुए तो उनके मामा की मौत हो गई। पर आजतक कोई पत्थरबाजी करने नहीं गया।
- वो भारत के साथ खुश हैं। कहती हैं- ‘मुझे घर में कैद होने और फोन बंद होने से आजादी चाहिए। और इन संगबाजों से भी।’ उन्हें डर लगता है अगर पढ़ाई यूं ही बर्बाद होती रही तो बच्चे पढ़ना और टीचर पढ़ाना ही भूल जाएंगे। 
- यूं भी तो नेता अपने फायदे के लिए ऐसा करवाते हैं। स्कूल बंद हैं तो वो अपने घर पर बच्चों को पढ़ाती हैं। 40 बच्चे आने लगे हैं। प्रदर्शन और पत्थरबाजी में आनेवाली भीड़ को छोड़ दें तो 80% लोग ऐसे हैं जो ये हिंसा नहीं चाहते।
- लेकिन मजबूरी में सब चुप हैं। मस्जिदों से आजादी के तराने बजते ही भीड़ घरों से बाहर निकलने लगती है। भड़कानेवाले अनाउंसमेंट होते हैं। 
- बटमालू की मस्जिद से एक शाम अनाउंसमेंट हुआ कि जितने भी सरकारी मुलाजिम हैं इस्तीफा देकर आंदोलन से जुड़ जाएं। 
- रूबीना कम्युनिटी हेल्थ सेंटर में नर्स है। वो कहती हैं कश्मीरी जानते हैं पाकिस्तान के साथ जाना ठीक नहीं। लेकिन वो हर वो काम करते हैं जिससे भारत को चिढ़ा सकें।
#3. तुम यहां क्यों आ गई बेटा? यहां तो जंग छिड़ी है
- इन दिनों दिल्ली से कम ही लोग कश्मीर जा रहे। इसलिए दो फ्लाइट्स कैंसल कर सबको एक में एडजस्ट कर दिया गया। फ्लाइट में सीआरपीएफ, सेना-वायुसेना के कुछ लोग और उनके परिजनों के अलावा कुछ कश्मीरी हैं। 
- इन्हीं में शामिल 6-7 साल की कश्मीरी बच्ची से बात होने लगी। उसके स्कूल में छुटि्टयां हैं इसलिए बुआ के घर दिल्ली आई थी। 
- मैंने पूछा- आपके स्कूल में छुटि्टयां क्यों हैं? तो बोली- वहां पत्थर चलते हैं। मैंने पूछा- कौन चलाता है? उसने मेरी ओर ऊंगली कर कहा- आप। सब लोग हंस पड़े। 
- शाम के छह बजे हम श्रीनगर एयरपोर्ट पर हैं। कश्मीर पहुंचने वाली उस दिन की आखिरी फ्लाइट। बाहर निकलने पर सिर्फ तीन टैक्सियां दिख रही हैं। मुझे बटमालू जाना है। प्रीपेड टैक्सी काउंटर वाले ने मना कर दिया।
- इसके बाद वह टेंगपोरा चौक बायपास तक पहुंचाने को राजी हुआ। इस शर्त पर अगर प्रोटेस्ट दिखा तो ब्रिज के पहले ही उतार देगा। ज्यादा पैसे की पेशकश पर बोला- ‘एक लाख भी दोगे तो नहीं जाऊंगा। जान की सलामती जरूरी है।’
- एयरपोर्ट से निकले भी नहीं थे कि टैक्सी रुक जाती है। सीआरपीएफ की गाड़ियों लगी हैं। उन पर जवान चढ़ रहे हैं। हमारा ड्राइवर बुदबुदाता है- ‘लो इंडिया ने और फौज भेज दी।’ 
- मैं श्रीनगर के बटमालू-टेंगपोरा इलाके में एक दोस्त के घर पहुंची। यह कश्मीर का बगदाद कहलाने लगा है। गलियों में सुबह से कर्फ्यू और शाम के साथ पत्थरबाजी का रिवाज सा हो चला है। 
- दोस्त की अम्मी मुझे वहां देखती ही बोलीं- ‘यहां जंग छिड़ी है, तुम क्यों आ गई बेटा? मैं रोज बेटे के लिए भी दुआएं मांगती हूं कि वो खैरियत से घर लौट आए।’

कर्फ्यू वाले बाजारों से...
#1. दूध, सब्जी, मटन सब तो आसानी से मिल जाता है, फिर कैसा कर्फ्यू?
कश्मीर में एक मौसम कर्फ्यू का भी होता है। 2008 में अमरनाथ भूमि विवाद पर यूं ही हिंसा हुई और कर्फ्यू लगा। 2010 में एक प्रदर्शन के दौरान आंसू गैस का गोला लगने से तुफैल मट्टू की मौत के बाद चार महीने पथराव चला। 
- फिर इस साल बुरहान वानी के एनकाउंटर के बाद से हिंसा जारी है। दिन में सुरक्षा बलों का डिप्लॉयमेंट होता है। इसलिए लोग घरों से तब तक नहीं निकलते जब तक जरूरी न हो। 
- सुबह डिप्लॉयमेंट से पहले 5 से 7 बजे तक दुकानें खुलती हैं। सब्जी की मंडी भी लगती है। जरूरत का हर सामान मिल जाता है। दवाइयों की दुकानें दिन रात खुली होती हैं। 
- दिन में अस्पताल जानेवालों यहां तक कि सरकारी मुलाजिमों को भी पुलिस वाले आनेजाने देते हैं। कुछ इलाके ग्रीन जोन भी हैं। जहां पत्थरबाजी नहीं होती। वहां दिन भर सामान्य ट्रैफिक चलता है। 
- अभी दोपहर का वक्त है। सड़कों पर इक्का-दुक्का गाड़ियां आ जा रही हैं। उनमें से ज्यादातर एंबुलेंस या हज के लिए इस्तेमाल हो रही हैं। सब जग दहशत पसरी है। टूटी खिड़कियों के कांच के भीतर भी कोई नजर नहीं आ रहा है। 
- हम सराफकदल से होते हुए पूरे डाउन टाउन का चक्कर काट आए। सीन एक जैसा है। कुछ लोग दुकानों के बाहर बैठे हैं। बमुशिकल एक दो लोग घरों के बाहर खड़े हैं। उनमें भी बुजुर्ग ज्यादा हैं। 
- जिन दीवारों से सटकर फोर्सेस खड़ी हैं उन पर उन्हीं के खिलाफ नारे लिखे हैं। लोगों से आबाद रहनेवाली जामिया मस्जिद पर ताला लगा है। आसपास के बाजार बंद हैं।
#2. होटल पड़े हैं खाली, कारोबार है प्रभावित
- ऐसा ही हाल कश्मीर के सबसे पुराने लकड़ी के पुल जैनाकदल का भी है। ईदगाह होते हुए हम अली मस्जिद के पास रुकते हैं। वही ईदगाह जहां अलगाववादी नेता आए दिन मार्च करते हैं। 
- पास ही में कश्मीर का सबसे बड़ा अस्पताल है शेर-ए-कश्मीर इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस। इस सड़क से सबसे ज्यादा लोग आ जा रहे हैं। कुछ गाड़ियों को रोक कर चेकिंग हो रही है। 
- फोर्स अपने कैम्प में लौटी है कि शाम 7 बजे के आसपास अली मस्जिद के सीआरपीएफ कैम्प के नजदीक पत्थरबाजी होने लगी। वहां तैनात जवान कहता है ये रोज की बात है। थोड़ी देर बाद सब शांत हो जाता है। और खिड़कियों के रास्ते बाजार खुलने लगते हैं। 
- हालांकि इसका मतलब ये नहीं है कि वहां सबकुछ सामान्य है। कश्मिरों का कारोबारा बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। टूरिज्म यहां का मुख्य बिजनेस है। एक अनुमान के मुताबिक अगस्त में ही इसमें 90% की कमी आई है। 
- होटल खाली पड़े हैं। जो आ रहे हैं वे भी डर के मारे अपने दोस्तों के यहां ठहरना चाहते हैं। होटल से बचने की ही कोशिश करते हैं। डल के आप-पास का इलाका जरूर थोड़ा शांत हैं। लेकिन कारोबार यहां भी प्रभावित हुआ है।कर्फ्यू वाले बाजारों से...
दहशत वाले क्षेत्रों से
#1. बच्चा भी पुलिस को धमकाता है-पैसे दो, वर्ना भीड़ को बता देंगे...
- सेंसेटिव इलाकों में ज्यादा फोर्स तैनात रहती है। शुक्रवार को ज्यादा बढ़ा दी जाती है। शाम को जब ये फोर्स अपने कैम्प में लौटने लगती है तो लड़के पीछे से उन पर पथराव करते हैं। 
- हर रोज घंटे दो घंटे इन पत्थरबाजों का यही ड्रामा चलता है। फोर्सेस भी पहले पत्थर से ही इनका जवाब देती है। जब ये कैम्प और उनकी गाड़ियों के नजदीक आने लगते हैं तो आंसू गैस और रबर बुलैट का इस्तेमाल करती है। 
- अगर भीड़ ज्यादा है और बेकाबू होने का खतरा है तब जाकर पैलेट गन चलाई जाती है। यहां भीड़ कई बार कुल्हाड़ी फेंकती है। पिछले एक महीने में तीन चार बार भीड़ में से एके-47 से फायर किया गया और ग्रेनेड भी दागे गए। 
- ज्यादा चुनौती जुलूस और अलगावावदियों की रैली ही है। एक पुलिस वाला कहने लगा, कश्मीरियों के मजे हैं। सरकारी मुलाजिमों को मुफ्त की तनख्वाह मिल रही है, और क्या चाहिए। मुश्किल तो हमारी है। 
- हम अपनी सुरक्षा कर लें वही सर्विस है इन दिनों। इस कर्फ्यू में सबसे बड़ी चुनौती इन्हीं की है। सुबह 3 बजे उठकर सीआरपीएफ जवान अपनी लोकेशन के लिए निकलते हैं। 
- 6 बजे उस पुलिस स्टेशन पर रिपोर्ट करते हैं जो 15-20 किमी दूर है और जिनके इलाके में इन्हें डिप्लॉय होना है। रात दस बजे ये दोबारा कैम्प में लौट पाते हैं। छुट्टी का स्कोप नहीं है। 
- अनंतनाग के रहनेवाले पुलिस जवान अब्दुल माजिद पिछले एक महीने में सिर्फ एक बार घर गए हैं। बोले, हम रात को 11 बजे श्रीनगर से निकले और 1 बजे अपने घर अनंतनाग मट्टन पहुंचे।
- फिर दो दिन घर में बंद रहे और वहां से भी रात को ही चुपचाप छिपकर लौटना पड़ा। वरना किसी को पता भी चल जाए की हम पुलिसवाले हैं तो खैर नहीं। उनका एक साथी पिछले हफ्ते बांडीपोरा से लौट रहा है।
- रास्ते में एक 10 साल के बच्चे ने उन्हें रोक और आईकार्ड दिखाने को कहा। जब उसे पता चला की वो पुलिस वाला है तो कहने लगा मेरे चीफ से मिलो। उसका चीफ 15 साल का था। 
- दोनों ने कहा जितने पैसे हैं हमें दे दो। हम पाकिस्तान का झंडा चढ़ाएंगे। और नहीं दिए तो पूरे गांव को शोर मचाकर बता देंगे कि तुम पुलिस वाले हो।
#2. पत्थरों के जवाब में टेनिस की गेंद
- नौहट्‌टा के एक सीआरपीएफ पोस्ट ने पत्थरबाजों से मुकाबले का एक खास तरीका इजाद किया। जब गलियों से लड़कों ने पथराव शुरू किया तो इन्होंने कैम्प में इकट्‌ठा कर रखी फुटबॉल, टेनिस बॉल उन पर फेंकी। 
- ये लड़के भी चालाक निकले, बॉल उठाकर घर ले गए। ये वो सीआरपीएफ जवान हैं जो गालियों, गुस्से, पत्थर और गोली का सामना करते हैं। और पिछले एक महीने से आधी नींद लेकर 18-18 घंटे ड्यूटी दे रहे हैं।
सेना के अस्पताल से...
#1. घायल जवान कहते हैं- फोटो मत खींचना, घर वालों को पता चल जाएगा
- 92 बेस अस्पताल का बेड नंबर 11,12,13...। अंग्रेजों के जमानें की बिल्डिंग में सेना का ये अस्पताल इन दिनों कश्मीर के घायल जवानों का इलाज कर रहा है। फिर चाहे वो सीआरपीएफ के हों या जम्मू-कश्मीर पुलिस।
- बेस अस्पताल के कमांडेंट ब्रिगेडियर एमएस तवाटिया कहते हैं पिछले एक महीने में 57 जवानों को यहां लाया गया है। जिनमें से 50 ठीक होकर जा चुके हैं। 7 का अब भी इलाज चल रहा है।
- इनमें पत्थरों से घायल जवान भी हैं और भीड़ में ग्रेनेड फटने से जख्मी हुए सैनिक भी। एक एमएलए खलील को भी यहां इलाज करवाने का मौका मिला है।
- 40 हजार सीआरपीएफ कश्मीर में है। सबसे ज्यादा घायल भी वही हुए हैं। लगभग 1600। लेकिन सीआरपीएफ का कश्मीर में एक भी अस्पताल नहीं है। 
- उनके जवानों को या तो इलाज के लिए सेना के 92 बेस अस्पताल जाना पड़ता है या बीएसएफ अस्पताल हुमहमा। सीआरपीएफ जवान रूपचंद बांडीपोरा में ड्यूटी थी, जब 31 जुलाई को पथराव के दौरान आंख में चोट लगी। 
- डॉक्टरों के मुताबिक उनकी आंख के पास की हड्डी में फ्रैक्चर है। कैमरा देखते ही वो कहने लगे प्लीज ये फोटो मेरे बच्चों और पत्नी को मत दिखाना। वो बेवजह परेशान हो जाएंगे। मैंने उन्हें बताया नहीं है कि मैं जख्मी हूं। 
- उन्हीं के पास वाले बेड पर जम्मू कश्मीर पुलिस के एक जवान का इलाज चल रहा है। उसने तो कैमरा देखते ही अपना चेहरा ढंक लिया। ये कहते हुए कि यदि लोगों को उसके बारे में पता भी चल गया तो वो उसके घर को जला देंगे और परिवार को मार डालेंगे।
- उसने प्रदर्शनकारियों से मुकाबला करते हुए एक एक्सीडेंट में अपना एक पैर गंवा दिया है। एयरलिफ्ट कर उसे इस अस्पताल तक पहुंचाया गया था। कैमरा बंद हुआ तो वो रोने लगा। बोला, उसके पास पैसे नहीं हैं और पुलिस डिपार्टमेंट ने अब तक उसके इलाज का खर्च उठाने को कुछ कहा-सुना नहीं है।
#2. कश्मीर की रैली में लश्कर का कमांडर बेखौफ भाग ले रहा
- पुलिसवालों को तो अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी ने भी धमकी दी है। खन्नाबल के एसएचओ तौसिफ मीर के नाम गिलानी ने प्रेस रिलीज जारी कर कहा कि तौसिफ ने पैलेट गन का इस्तेमाल किया, इसलिए पत्थरबाजों को उनके परिवार पर हमला करना चाहिए।
- पुलिस ने बमुश्किल तौसिफ के परिवार को सुरक्षित जगह शिफ्ट करवाया। पुलिस के मुताबिक 200 से ज्यादा वेपन भीड़ छीनकर ले गई है। इनमें से कम ही रिकवर हो पाए हैं। 
- अब आप वेपन लिए घूम रहे लोगों को क्या कहेंगे? साउथ कश्मीर में रैली में लश्कर का कमांडर दुजाना बेखौफ भाग ले रहा है। 
- सेना ने लगभग ऑपरेशन बंद कर रखे हैं। क्योंकि सेना एनकाउंटर के लिए निकलेगी तो लोग पथराव करेंगे। और अगर उनसे निपटने के लिए गोली चली तो फिर शायद हालात और बिगड़ जाएं......।
- सीआरपीएफ पीआरओ कमांडेट राजेश यादव कहते हैं, करन नगर के सीआरपीएफ कैम्प में 10 दिन पहले कॉन्स्टेबल को सीने में दर्द की शिकायत हुई थी। वहां से सबसे पास सरकारी अस्पताल एसएमएचएस था। 
- उसे दो साथियों के साथ अस्पताल पहुंचाया गया। अस्पताल में मौजूद भीड़ को पता चल गया की वो सीआरपीएफ का जवान है। उन्होंने उसे इतना मारा की उसके चेहरे पर तीन फ्रैक्चर हो गए।
- यही नहीं उसका इयर ड्रम भी फट गया। उसे आर्मी अस्पताल में शिफ्ट किया। नौहट्टा में पत्थरबाजी कर रही भीड़ से सीआरपीएफ कैम्प को निशाना बनाया गया।
और इकोनॉमी; 26 साल में 6000 दिन हड़ताल, 80 हजार करोड़ रु. का नुकसान

कश्मीर में आतंक की शुरुआत 1990 में हुई थी। इन 26 सालों में हर साल औसतन 200 हड़तालें होती हैं। कभी अलगाववादियों के बुलावे पर तो कभी सेना की किसी कार्रवाई के विरोध में। 
- हाल ही में कश्मीर घाटी में हुए एक सर्वेक्षण के मुताबिक हड़ताल, कर्फ्यू और प्रदर्शनों के चलते यहां की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से चरमरा चुकी है। पिछले 26 साल में 6 हजार दिन सिर्फ हड़तालों में ही गुजर गए जिसने कश्मीरियों को 80 हजार करोड़ का नुकसान पहुंचाया।
- सर्वे के मुताबिक सबसे ज्यादा हड़तालें और बंद गर्मियों की शुरुआत में होती हैं। इस वजह से कश्मीर में आने वाले पर्यटकों के आंकड़े का ग्राफ गिरता चला गया है। इसमें चौंकाने वाली बात यह है कि गर्मियों में ही कई ऐसे मुद्दे सामने आते हैं जो बहुत पुराने भी होते हैं। 
- यहां कहावत भी है कि “खून का बदला जून में’। सर्वेक्षण के मुताबिक, जो व्यापारी और दुकानदार टूरिज्म, होटल, हाउसबोट, कारपेट तथा हैंडीक्राफ्ट जैसे उद्योगों से जुड़े हुए थे वे पिछले दो दशकों में अर्श से फर्श पर आ गए हैं।
कश्मीर को कुल 80 हजार करोड़ का घाटा
- आंकड़ें चौंकाते हैं कि इनमें से कई जो करोड़पति गिने जाते थे आज गरीबी रेखा से नीचे की सूची में अपना नाम लिखवाने को मजबूर है। सर्वे के मुताबिक, इन हड़तालों के कारण व्यक्तिगत तौर पर प्रत्येक बिजनेसमेन को 40-40 लाख का घाटा हुआ है तो अनुमानतः 80 हजार करोड़ का कुल घाटा कश्मीर को हुआ है।
- 26 साल में 6 हजार हड़तालों के कारण छात्रों को भी इस दौर से गुजरना पड़ा है। सर्वेक्षण के अनुसार, केजी से लेकर यूनिवर्सिटी लेवल तक के स्टूडेंट्स को इन 26 सालो में प्रत्येक को 25 हजार पीरियड का नुकसान हुआ है। 
- ऐसा हड़तालों और बंद के कारण शिक्षा संस्थानों के अक्सर बंद रहने के कारण हुआ है और इन हड़तालों के कारण हुए पढ़ाई के नुकसान के कारण शैक्षिक स्तर पर स्तर भी गिर गया है।

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