शुक्रवार, 19 अगस्त 2016

Rio से खास इंटरव्यू: साक्षी बोलीं-

Rio से खास इंटरव्यू: साक्षी बोलीं- भाई ने कहा था राखी नहीं, इस बार मेडल चाहिए; हार-जीत को लेकर दिमाग में थे सिर्फ दो सवाल


रियो/रोहतक.एक बार फिर ये बात साबित हो गई कि जब चेहरे उदास हों तो बेटियां ही होती हैं जो सबके चेहरे पर मुस्कुराहट ले आती हैं। साक्षी ने पूरे देश को मुस्कुराने का मौका दे दिया। इनकी ये जीत की जिद निश्चित तौर पर एक बड़ा बदलाव लाएगी। रियो से साक्षी नेभास्कर को स्पेशल इंटरव्यू दिया। उन्होंने कहा बस दो सवाल दिमाग में थे। हारी तो क्या होगा और जीत गई तो क्या मिलेगा। रियो में साक्षी बोली- बस इतना ही चाहती थी कि कुछ भी करूं, लेकिन मेरे गांव की बच्चियों के लिए आगे का रास्ता आसान हो जाए। भाई ने भी ओलिंपिक में जाने से पहले कहा था- इस बार राखी न बांध सको तो कोई बात नहीं, लेकिन मेडल जरूर चाहिए। जहां अपमान सहा, ताने सुने वहां जश्न की तैयारी, पढ़ें पूरा इंटरव्यू साथ में जानें साक्षी के घर पहुंचकर भास्कर ने क्या देखा...
Q. पहली प्रेरणा कहां से मिली?
साक्षी :सपना देखती थी- प्लेन में बैठूं, इसलिए खिलाड़ी बनी। जानती थी-जो देश को रीप्रेजेंट करते हैं, उन्हें प्लेन में बैठने को मिलता है। पिता बोले-ऐसा सपना देख रही हो तो ऐसा करना कि तुम्हारा नाम हमेशा के लिए लोगों को याद रह जाए।
Q. अब जीत गई हैं तो आगे क्या?
साक्षी:पूरा जीवन बदल जाएगा। मैं जानती हूं, मुझे जैसा चाहिए, वैसा अवसर मिलेगा नहीं। घर जाने के बाद आराम करूंगी। हालांकि, कोई इंटरव्यू लेने आएगा तो मां मुझे उठा ही देगी।
Q. सब कहते हैं तुम तगड़ी हो, क्या खाती हो?
साक्षी :यूं तो शाकाहारी खाना पसंद है। कभी-कभार चिकन-अंडे ले लेती हूं। मेरी पसंद का भोजन है परांठे, अचार व दही। कॉम्पिटिशन में रहते समय डाइट पर कंट्रोल रखना पड़ता है। मुझे गीत-संगीत या फिल्म देखने का बहुत शौक नहीं है।
Q. कुश्ती में तो फाेगाट बहनों का डंका है, कभी निगेटिविटी नहीं आई?
साक्षी :बल्गेरियन कैम्प गए तब लाइन में सभी फोगाट बहनें थीं। उनके बीच मैं अकेली ऐसी थी जिसका सरनेम फोगाट नहीं था। धीरे-धीरे मुझे इसकी आदत पड़ गई। अलग पहचान बनने लगी। जैसा कि मैं पहले भी कह चुकी हूं कि मैं हमेशा दोनों तरफ से विचार करती हूं- हार गई तो क्या और जीत गई तो क्या होगा?
साक्षी ने बताया- आखिरी 9 सेकंड में दिमाग में क्या चल रहा था
- साक्षी ने कहा- जब किर्गिस्तान की पहलवान 5 पॉइंट लेकर आगे चल रही थी तब भी मुझे जीत का विश्वास था।
- मेरे पास तीन मिनट थे। मैं अच्छा खेलूंगी तो मेडल जीत सकती हूं। आखिरी 30 सेकंड में कोच की आवाज कानों में पड़ने लगी कि साक्षी-अटैक।
- मैंने घड़ी देखी। नौ सैकंड बचे थे। मुझे भरोसा था- मैं कर सकती हूं। और आखिरी नौ सैकंड में बाजी पलट गई।
जहां अपमान सहा, ताने सुने, वहां जश्न की तैयारी
- साक्षी मलिक के गांव मोखरा में जीत का जश्न अब तक जारी है। बता दें कि इस गांव में रेसलिंग की वजह से साक्षी को ताने भी सुनने पड़े थे।
- अब जश्न की तैयारी है। गांव के सरपंच सुरेंद्र, लक्ष्मी, प्रदीप व योगिता का कहना है कि वे पूरे मान के साथ बेटी को दिल्ली एयपोर्ट से गांव लाएंगे और उनके सम्मान में प्रोग्राम किया जाएगा।
वुमन रेसलिंग में भारत को दिलाया पहला मेडल
- बता दें कि ओलिंपिक के 12वें दिन 23 साल की रेसलर साक्षी मलिक ने कमाल का मैच खेला। वे 58 किलो की फ्री-स्टाइल रेसलिंग में 5-0 के बड़े मार्जिन से पिछड़ रही थीं, लेकिन उन्होंने आखिरी 9 सेकंड में बाजी पलटकर भारत को ब्रॉन्ज दिला दिया। रियो में यह भारत का पहला मेडल है।
- महिला रेसलिंग में भारत का किसी भी अोलिंपिक का पहला मेडल है। साक्षी ने बुधवार शाम 6:38 बजे से देर रात 2:50 तक आठ घंटे 12 मिनट में 5 मुकाबले लड़े। चार में जीतकर देश को मेडल दिलाया। 
#Rio में भारत को पहला मेडल दिलाने वालीं साक्षी की जिद और जुनून के 5 किस्से
किस्सा - 1
आखिरी 10 सेकंड में नहीं मानी हार

- साक्षी मलिक ने मेडल जीतने के बाद बताया, "आज पूरे दिन नेगेटिविटी नहीं आई। आखिरी पड़ाव पर मेरे पास 10 सेकंड ही थे। मैंने 2-2 सेकंड में कुश्ती बदलते देखी है तो सोचा कि 10 सेकंड में ऐसा क्यों नहीं हो सकता? लड़ना है, मेडल लेना है। यही दिमाग में था कि मेडल तो मेरा है। आखिरी में मैं जो प्वाइंट जीत पाई उसका कारण था कि क्योंकि मैं उन दस सेकंड में हार नहीं मानी थी।''
किस्सा - 2
पहलवान बनकर प्लेन बैठने की ख्वाहिश

- साक्षी के पिता पिता सुखबीर मलिक बताते हैं, ''साक्षी शुरू से बोलती थी कि पापा मैं पहलवान बनकर प्लेन में बैठूंगी और ओलिंपिक मेडल जीतूंगी। साक्षी ने भी कहा, ''रेसलर इसलिए बनी क्योंकि प्लेन में बैठने की ख्वाहिश थी। रेसलर बनना बहुत बड़ा सपना था। मेडल सपनों में आता था।'' 
किस्सा - 3
कुश्ती की ड्रेस देखी तो रेसलर बनने की ठान ली

- परिवार चाहता था कि साक्षी जिम्नास्टिक्स सीखे। लेकिन बाकी गेम साक्षी को पसंद नहीं अाए। कुश्ती हॉल में पहुंची तो पहलवानों को कुश्ती ड्रेस में देखा। ड्रेस ऐसी पसंद आई तो कुश्ती सीखने का इरादा पक्का कर लिया।
किस्सा - 4
जब मां ने कहा- पहलवानों में बुद्धि कम होती है

- मां सुदेश मलिक नहीं चाहती थीं कि बेटी पहलवान बने। उनका मानना था कि पहलवानों में बुद्धि कम होती है। बेटी रेसलर बनी तो पढ़ाई में पिछड़ जाएगी। लेकिन साक्षी ने ऐसा नहीं होने दिया। स्कूल में हर साल एवरेज 70% मार्क्स हासिल किए। इसी के साथ लगातार 12 साल पांच-पांच रेसलिंग की प्रैक्टिस की।
किस्सा - 5
देश के लिए मेडल जीतकर कोई थकता नहीं

- मां सुदेश मलिक ने कहा, ''जीत के बाद साक्षी से बात हुई। मैंने उससे पूछा कि क्या तुम थक गई हो, तो वो बोली कि देश के लिए मेडल जीतने के बाद कोई थकता नहीं है।''
- कोच कुलदीप सिंह ने कहा, ''इस बच्ची ने मुझे जिंदगी का सबसे बेहतरीन तोहफा दे दिया है। मैं जिंदगीभर उसका कर्जदार रहूंगा।''
पिता बोले-अब कोई नहीं कह सकेगा बेटियां कुश्ती करती अच्छी नहीं लगता
बेटी की जीत से फूले नहीं समा रहे पिता सुखबीर कहते हैं-अब कोई नहीं कहेगा : लड़कियां कुश्ती करती अच्छी नहीं लगतीं। वह पांच घंटे प्रैक्टिस करती थी। शादी-समारोह या परिवार के किसी प्रोग्राम तक में शामिल नहीं होती थी। वहीं मां सुदेश बोलीं-मैं शुरू में बेटी के कुश्ती
लड़ने के विरोध में थी। बाद में मुझे उसकी जिद के आगे इतना झुकना पड़ा कि कुश्ती के दांव तक याद हो गए।
मां ने दिया नारा-अब बेटी बढ़ाओ, बेटी पढ़ाओ और बेटी खिलाओ
- मां बोलीं-साक्षी को 4 बजे स्टेडियम ले जाती थी। डाइट का ध्यान रखती थी, मेरी तपस्या सफल हो गई।
- बुधवार रात जैसे ही साक्षी ने पदक जीता, मोखरा (हरियाणा) में लोगों ने जमकर आतिशबाजी की।

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